नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज़ हुई करण जौहर की फिल्म ‘नादानियां’ ने दर्शकों के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। इस फिल्म में इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म की कहानी, निर्देशन, और कलाकारों के प्रदर्शन पर विभिन्न समीक्षकों ने अपने विचार प्रकट किए हैं।
कहानी की समीक्षा:
‘नादानियां’ की कहानी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाली पिया जय सिंह (खुशी कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है। पिया एक अमीर परिवार से है, लेकिन उसके माता-पिता के बीच तनावपूर्ण संबंध और पारिवारिक परंपराओं के कारण वह मानसिक संघर्ष का सामना करती है। अपनी सहेलियों के साथ उत्पन्न गलतफहमियों को दूर करने के लिए पिया अर्जुन मेहता (इब्राहिम अली खान) को किराए का बॉयफ्रेंड बनाती है। अर्जुन एक मेहनती छात्र है जो आर्थिक तंगी के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगा है। यह नकली रिश्ता धीरे-धीरे वास्तविक भावनाओं में बदल जाता है, लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत चुनौतियां उनके रास्ते में आती हैं।
समीक्षकों के अनुसार, फिल्म की कहानी में नवीनता का अभाव है और यह पूर्वनिर्धारित प्रतीत होती है। कई समीक्षकों ने इसे हॉलीवुड की टीनएज रोमांटिक-कॉमेडी फिल्मों और करण जौहर की पूर्ववर्ती फिल्मों की मिश्रण बताया है। कहानी में गहराई और सजीवता की कमी महसूस होती है, जो दर्शकों को बांधे रखने में असफल रहती है।
कलाकारों का प्रदर्शन:
इब्राहिम अली खान की यह पहली फिल्म है, और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस आकर्षक है। हालांकि, उनकी अभिनय क्षमता में अभी भी सुधार की गुंजाइश है, विशेषकर एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलीवरी के मामले में। खुशी कपूर की यह तीसरी फिल्म है, लेकिन उनकी अभिनय में आत्मविश्वास की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्हें अपनी अभिनय कौशल में और मेहनत करने की आवश्यकता है।
अनुभवी कलाकारों में दीया मिर्जा, सुनील शेट्टी, महिमा चौधरी, और जुगल हंसराज ने अपने-अपने किरदारों में सजीवता लाने की कोशिश की है। विशेषकर दीया मिर्जा और सुनील शेट्टी ने अपने अनुभव का उपयोग करते हुए कहानी में गहराई लाने का प्रयास किया है। हालांकि, कमजोर स्क्रिप्ट के कारण उनके प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं।
निर्देशन और पटकथा:
निर्देशक शौना गौतम की यह पहली फिल्म है, और उन्होंने स्टाइलिश लोकेशंस और ग्लैमरस प्रस्तुतिकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि, कहानी और भावनात्मक पहलुओं पर उनकी पकड़ कमजोर रही है, जिससे फिल्म में सजीवता का अभाव महसूस होता है। पटकथा में नवीनता की कमी और पूर्वानुमेय घटनाक्रम के कारण दर्शकों की रुचि बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
संगीत:
फिल्म का संगीत औसत दर्जे का है। ‘तेरे इश्क में’ गीत को कुछ हद तक सराहा गया है, लेकिन कुल मिलाकर संगीत दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ने में असफल रहा है। संगीत फिल्म की गति को बढ़ाने में सक्षम नहीं है और कहानी के साथ मेल नहीं खाता।
कुल मिलाकर:
‘ एक ऐसी फिल्म है जो नए कलाकारों को लॉन्च करने के उद्देश्य से बनाई गई है, लेकिन कमजोर कहानी, निर्देशन, और अभिनय के कारण यह दर्शकों को प्रभावित करने में असफल रही है। फिल्म में नवीनता का अभाव है और यह पूर्वनिर्धारित प्रतीत होती है। यदि आप हल्की-फुल्की रोमांटिक-कॉमेडी फिल्मों के प्रशंसक हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है, लेकिन गहरी और सजीव कहानियों की तलाश में हैं, तो यह फिल्म निराश कर सकती है।