आजपत्रिका न्यूज़ टीम द्वारा | प्रकाशित: 28 मार्च 2025
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था, लेकिन इसने चिकित्सा विज्ञान में एक नई क्रांति भी ला दी। इस दौरान कई वैक्सीन तेजी से विकसित की गईं, जिनमें भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और एस्ट्राजेनेका के सहयोग से बनी कोविशील्ड ने अहम भूमिका निभाई। कोविशील्ड भारत के टीकाकरण अभियान का एक मुख्य आधार बनी, लेकिन हाल ही में एनडीटीवी इंडिया की एक हेडलाइन “कोविशील्ड से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा, कंपनी ने रूद कबूला” ने इस वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। इस लेख में हम कोविशील्ड से जुड़े विवाद, ब्लड क्लॉटिंग की चिंताओं के पीछे के विज्ञान, कंपनी की प्रतिक्रिया और उन करोड़ों लोगों के लिए इसके मायने पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिन्होंने यह वैक्सीन ली है।
कोविशील्ड: भारत के कोविड-19 के खिलाफ जंग में एक मजबूत हथियार
जब कोविड-19 महामारी ने भारत में दस्तक दी, तो देश एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा था। 1.3 अरब से अधिक की आबादी वाले इस देश को एक ऐसी वैक्सीन की जरूरत थी जो न केवल प्रभावी हो, बल्कि किफायती और बड़े पैमाने पर उत्पादन योग्य भी हो। इसी दौरान कोविशील्ड ने भारत के टीकाकरण अभियान में अपनी जगह बनाई। कोविशील्ड, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (AZD1222) का एक संस्करण है, जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बनाया। सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है, और इसने कोविशील्ड को जनवरी 2021 में भारत के टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लॉन्च किया, जिसमें भारत बायोटेक की कोवैक्सिन भी शामिल थी।
कोविशील्ड जल्द ही भारत के टीकाकरण अभियान का मुख्य आधार बन गई। इसकी कम कीमत, आसान भंडारण (2-8 डिग्री सेल्सियस पर सामान्य रेफ्रिजरेशन की जरूरत), और उच्च उत्पादन क्षमता ने इसे भारत जैसे विशाल देश के लिए एक आदर्श विकल्प बनाया। कोविशील्ड एक वायरल वेक्टर वैक्सीन है, जिसमें एक हानिरहित एडेनोवायरस (चिंपैंजी से लिया गया, इसलिए इसका नाम ChAdOx1 है) का उपयोग किया जाता है। यह वायरस SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन का जेनेटिक कोड मानव कोशिकाओं में पहुंचाता है, जिससे शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। क्लिनिकल ट्रायल्स में कोविशील्ड ने लक्षण वाले कोविड-19 के खिलाफ 70-90% तक की प्रभावशीलता दिखाई, जो डोजिंग रेजिमेंट पर निर्भर थी। इसने इसे महामारी को रोकने के लिए एक शक्तिशाली हथियार बना दिया।
2021 के मध्य तक, भारत में करोड़ों लोगों ने कोविशील्ड की डोज ली थी, और यह वैक्सीन न केवल भारत में, बल्कि कोवैक्स पहल के तहत कई अन्य देशों में भी पहुंचाई गई। लेकिन जैसे-जैसे वैक्सीन का उपयोग बढ़ा, वैसे-वैसे इसके कुछ दुर्लभ दुष्प्रभाव भी सामने आने लगे, जिनमें सबसे ज्यादा चर्चा ब्लड क्लॉटिंग की समस्या को लेकर हुई।
ब्लड क्लॉटिंग का खतरा: क्या है पूरा मामला?
कोविशील्ड और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग की चिंताएं सबसे पहले 2021 की शुरुआत में यूरोप में सामने आईं। कई देशों ने इस वैक्सीन के उपयोग को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था, जब कुछ लोगों में वैक्सीन लेने के बाद रक्त के थक्के (थrombosis) और थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (प्लेटलेट्स की कमी) की दुर्लभ घटनाएं देखी गईं। इस स्थिति को वैक्सीन-इंड्यूस्ड इम्यून थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (VITT) नाम दिया गया। VITT एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में असामान्य रूप से रक्त के थक्के बनते हैं, और साथ ही प्लेटलेट्स की संख्या में कमी आती है, जो रक्त को जमने से रोकने में मदद करते हैं।
हालांकि ये मामले बेहद दुर्लभ थे—लाखों में से कुछ ही मामले सामने आए—लेकिन इनकी गंभीरता ने वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य अधिकारियों का ध्यान खींचा। यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (EMA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसकी जांच की और पाया कि कोविशील्ड और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लेने के बाद VITT का जोखिम बहुत कम है, लेकिन यह जोखिम पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। EMA ने अनुमान लगाया कि यह जोखिम 1 लाख में से 1 से 10 लोगों में देखा जा सकता है, और यह ज्यादातर युवा वयस्कों, खासकर महिलाओं में देखा गया।
भारत में, जहां कोविशील्ड का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा था, शुरुआत में इस तरह की चिंताएं ज्यादा सामने नहीं आईं। लेकिन जैसे-जैसे वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ा, कुछ लोगों ने वैक्सीन लेने के बाद असामान्य लक्षणों की शिकायत की, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, और शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन। इनमें से कुछ मामले ब्लड क्लॉटिंग से जुड़े हो सकते थे, लेकिन भारत में इस तरह के मामलों की आधिकारिक संख्या बहुत कम रही। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में इन मामलों की कम रिपोर्टिंग का कारण डेटा संग्रह में कमी और जागरूकता की कमी हो सकती है।
कंपनी की स्वीकारोक्ति: एस्ट्राजेनेका ने क्या कहा?
हाल ही में, एस्ट्राजेनेका ने एक बयान में स्वीकार किया कि उनकी वैक्सीन, जिसका भारत में कोविशील्ड के रूप में उपयोग हुआ, दुर्लभ मामलों में ब्लड क्लॉटिंग का कारण बन सकती है। यह स्वीकारोक्ति एक ब्रिटिश कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे के दौरान आई, जिसमें कई लोगों ने वैक्सीन के दुष्प्रभावों के लिए कंपनी पर मुकदमा दायर किया था। एस्ट्राजेनेका ने कहा कि यह जोखिम “बेहद दुर्लभ” है और वैक्सीन के लाभ इसके जोखिमों से कहीं अधिक हैं। कंपनी ने यह भी जोड़ा कि वे वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर लगातार निगरानी कर रहे हैं और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
इस स्वीकारोक्ति ने भारत में भी हलचल मचा दी, क्योंकि कोविशील्ड भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली वैक्सीन थी। कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या उन्हें इस जोखिम के बारे में पहले से सूचित किया गया था, और क्या सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया। भारत सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोविशील्ड की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर लगातार नजर रखी जा रही है, और यह वैक्सीन अभी भी कोविड-19 के खिलाफ एक प्रभावी हथियार है।
ब्लड क्लॉटिंग के लक्षण और सावधानियां
अगर आपने कोविशील्ड की डोज ली है और आपको ब्लड क्लॉटिंग को लेकर चिंता है, तो कुछ लक्षणों पर नजर रखना जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैक्सीन लेने के बाद पहले 4-30 दिनों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- लगातार और गंभीर सिरदर्द
- धुंधला दिखना या दृष्टि में बदलाव
- सांस लेने में तकलीफ
- सीने में दर्द
- पैरों में सूजन
- पेट में लगातार दर्द
- शरीर पर असामान्य चोट या रक्तस्राव के निशान
अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। हालांकि, यह याद रखना जरूरी है कि ये लक्षण बहुत दुर्लभ हैं, और कोविशील्ड लेने वाले अधिकांश लोगों को कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं हुआ है।
कोविशील्ड के लाभ बनाम जोखिम: एक संतुलित नजरिया
कोविशील्ड और ब्लड क्लॉटिंग के जोखिम को समझने के लिए हमें इसके लाभों को भी देखना होगा। कोविशील्ड ने भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान लाखों लोगों की जान बचाई। इसने गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने, और मृत्यु के जोखिम को काफी हद तक कम किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बार-बार कहा है कि कोविशील्ड के लाभ इसके जोखिमों से कहीं अधिक हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम उन लोगों में ज्यादा है जो पहले से ही कुछ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, जैसे ऑटोइम्यून डिसऑर्डर या रक्त से संबंधित बीमारियां। इसके अलावा, कोविड-19 संक्रमण से होने वाले ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम वैक्सीन की तुलना में कहीं अधिक है। एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 से संक्रमित मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम 10-20% तक हो सकता है, जबकि वैक्सीन से यह जोखिम 0.0001% से भी कम है।
भविष्य के लिए सबक: वैक्सीन सुरक्षा और पारदर्शिता
कोविशील्ड और ब्लड क्लॉटिंग का मामला हमें वैक्सीन सुरक्षा और पारदर्शिता के महत्व की याद दिलाता है। भविष्य में, वैक्सीन निर्माताओं और सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए, ताकि वे सूचित निर्णय ले सकें। इसके साथ ही, वैक्सीन से होने वाले दुष्प्रभावों की निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए एक मजबूत सिस्टम की जरूरत है, खासकर भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच असमान है।
निष्कर्ष: क्या आपको चिंता करने की जरूरत है?
अगर आपने कोविशील्ड की डोज ली है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम बेहद दुर्लभ है, और कोविशील्ड ने कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, अगर आपको कोई असामान्य लक्षण दिखाई देता है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। यह भी जरूरी है कि हम वैक्सीन से जुड़े जोखिमों और लाभों को एक संतुलित नजरिए से देखें, और वैज्ञानिक अनुसंधान पर भरोसा करें।
आजपत्रिका न्यूज़ इस मुद्दे पर लगातार नजर रखेगी और आपको नवीनतम अपडेट्स प्रदान करती रहेगी। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और सुरक्षित रहें!