
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट में बिहार सरकार की वित्तीय पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, बिहार सरकार ने ₹70,877 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की, लेकिन उसके पास इस खर्च का कोई दस्तावेज़ या लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है।
📌 CAG ने क्या कहा है?
रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि वर्ष 2021-22 के दौरान बिहार सरकार ने जिन मदों पर यह खर्च किया, उनकी रसीदें, चालान, या वित्तीय रिकॉर्ड विभागों द्वारा प्रस्तुत नहीं किए गए। ये रकम अनुदान वितरण, पेंशन, निर्माण कार्यों, विकास योजनाओं, और अन्य प्रशासनिक खर्चों में शामिल थीं। CAG के मुताबिक, यह नियमों की सीधी अवहेलना है।
🔍 मुख्य खुलासे:
- ✅ ₹71,000 करोड़ खर्च पर कोई दस्तावेज नहीं: यह राशि राज्य के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा है, और इस पर रिपोर्टिंग या ऑडिट ट्रेल मौजूद नहीं है।
- ⚠️ 9,700 करोड़ की पुरानी अनियमितता अभी तक सुलझी नहीं: CAG ने पहले की रिपोर्ट में भी इसी प्रकार की गड़बड़ियों की ओर संकेत किया था, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।
- 🏗️ विकास योजनाओं में सबसे ज्यादा गड़बड़ी: ग्रामीण विकास, निर्माण विभाग और पंचायती राज में सबसे अधिक बिना दस्तावेज खर्च हुए।
- 📉 वित्तीय जवाबदेही में गिरावट: इससे बिहार की क्रेडिट रेटिंग और निवेश माहौल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
- 🧾 कानूनी और प्रशासनिक पक्ष
- बिना लेखा-जोखा खर्च करना भारत सरकार की वित्तीय नियमावली (GFR) और संविधान की 283(2) धारा का उल्लंघन है। CAG ने सिफारिश की है कि इस पर सख्त कार्रवाई हो और संबंधित अधिकारियों से जवाब लिया जाए।
- 🧑⚖️ क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
- वित्त विभाग को नोटिस भेजा जाए।
- स्पेशल ऑडिट और RTI जांच हो।
- भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा स्वतंत्र जांच शुरू हो।
- लंबित योजनाओं और ठेके की समीक्षा हो।
📊 राजनीतिक प्रतिक्रिया:
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और वित्त मंत्री से इस्तीफे की मांग की है। राजद और कांग्रेस ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया है, जबकि जदयू ने इसे “तकनीकी त्रुटि” करार देकर खारिज करने की कोशिश की।
🏛️ क्या कहती है जनता और विशेषज्ञ?
वित्तीय मामलों के जानकारों के अनुसार, यह रिपोर्ट केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि प्रशासनिक अराजकता की तस्वीर भी पेश करती है। यह प्रदेश में प्रशासनिक जवाबदेही की कमी का प्रतीक है।
🧠 गहराई से विश्लेषण:
🔬 1. सरकारी रिकॉर्डिंग सिस्टम की विफलता:
राज्य की अधिकांश योजनाओं को डिजिटल रूप से मॉनिटर करने की योजना थी, लेकिन विभागों की लापरवाही और डेटा प्रबंधन की कमी के कारण रिपोर्टिंग न के बराबर रही।
📉 2. निवेश पर प्रभाव:
ऐसी वित्तीय अनियमितताओं से बाहरी निवेशक राज्य में निवेश करने से हिचकते हैं। इससे बिहार की आर्थिक वृद्धि रुक सकती है।
🏭 3. विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर:
जनता के पैसों का सही उपयोग नहीं होने से सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाएं प्रभावित होती हैं।
🔮 क्या हो सकता है भविष्य?
यदि इन गड़बड़ियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो इससे केंद्र और राज्य सरकारों के संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। केंद्र सरकार राज्य को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर पुनर्विचार कर सकती है।
📢 निष्कर्ष:
CAG की यह रिपोर्ट केवल एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है कि अगर प्रशासनिक पारदर्शिता नहीं लाई गई, तो बिहार का आर्थिक और सामाजिक ढांचा डगमगा सकता है। अब जिम्मेदारी बिहार सरकार पर है कि वह इस पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करे।