Thursday, June 26, 2025

तिलक की प्राचीन परंपरा: विभिन्न सम्प्रदायों में स्वरूप और महत्व का खुलासा

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हिंदू धर्म में तिलक एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र प्रथा है, जो न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा है, बल्कि यह व्यक्ति की आध्यात्मिक पहचान और सम्प्रदायिक संबद्धता को भी दर्शाता है। तिलक, जिसे माथे पर लगाया जाता है, विभिन्न सम्प्रदायों में अलग-अलग स्वरूपों और प्रतीकों के साथ देखा जा सकता है। यह न केवल एक सौंदर्यिक प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अर्थ छुपे होते हैं। इस लेख में हम कुछ प्रमुख सम्प्रदायों में प्रचलित तिलकों के स्वरूप, उनके निर्माण की प्रक्रिया और उनके महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

तिलक का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

हिंदू धर्म में तिलक को माथे पर लगाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। माथे का मध्य भाग, जिसे “आज्ञा चक्र” कहा जाता है, आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। तिलक लगाने से इस चक्र को जागृत करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने में मदद मिलती है। तिलक विभिन्न सामग्रियों जैसे चंदन, कुमकुम, हल्दी, भस्म (राख) आदि से बनाया जाता है, और हर सामग्री का अपना विशेष महत्व होता है। उदाहरण के लिए, चंदन शीतलता और शांति का प्रतीक है, जबकि कुमकुम शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

तिलक का स्वरूप और उसकी बनावट सम्प्रदाय के अनुसार भिन्न होती है। यह सम्प्रदायिक पहचान को दर्शाने का एक सशक्त माध्यम है। वैष्णव, शदशा, शैव, शाक्त और अन्य सम्प्रदायों में तिलक के अलग-अलग स्वरूप देखने को मिलते हैं। आइए, अब हम विभिन्न सम्प्रदायों के तिलकों पर विस्तार से नजर डालते हैं।

श्रीगणेश-तिलक

श्रीगणेश-तिलक, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, भगवान गणेश के भक्तों द्वारा लगाया जाता है। यह तिलक एक अर्धचंद्राकार आकृति के साथ एक बिंदु के रूप में होता है। यह चंदन या कुमकुम से बनाया जाता है। गणेश भक्त इस तिलक को लगाकर बुद्धि, समृद्धि और विघ्नहर्ता गणेश की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं। इस तिलक का स्वरूप गणेश जी के मस्तक पर चंद्रमा की आकृति से प्रेरित है, जो उनके शांत और बुद्धिमान स्वभाव को दर्शाता है।

श्रीरामानुजी वैष्णव-तिलक (तेगले शाखा)

रामानुजी सम्प्रदाय के वैष्णव भक्त अपने माथे पर एक विशेष तिलक लगाते हैं, जिसे “तेगले शाखा” कहा जाता है। यह तिलक दो समानांतर रेखाओं के बीच में एक बिंदु के साथ बनाया जाता है। यह तिलक भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक माना जाता है, और बीच का बिंदु माता लक्ष्मी का प्रतीक है। इस तिलक को चंदन या गोपी चंदन से बनाया जाता है, जो पवित्र माना जाता है। रामानुजी सम्प्रदाय के अनुयायी इस तिलक को लगाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भक्ति और कृपा की कामना करते हैं।

श्रीसुर्य-तिलक

सूर्य भक्तों द्वारा लगाया जाने वाला श्रीसूर्य-तिलक एक गोलाकार बिंदु के रूप में होता है, जो सूर्य की प्रचंड ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है। यह तिलक आमतौर पर कुमकुम से बनाया जाता है, जो सूर्य की लालिमा और शक्ति को दर्शाता है। सूर्य को जीवनदाता माना जाता है, और इस तिलक को लगाने से सूर्य की ऊर्जा और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह तिलक विशेष रूप से सूर्य पूजा और सूर्य नमस्कार के दौरान लगाया जाता है।

श्रीशिव-तिलक

शिव भक्तों द्वारा लगाया जाने वाला श्रीशिव-तिलक तीन समानांतर रेखाओं के रूप में होता है, जो भगवान शिव के त्रिनेत्र (तीन नेत्रों) का प्रतीक है। यह तिलक भस्म (राख) से बनाया जाता है, क्योंकि भगवान शिव को भस्म से प्रेम है। यह तिलक शिव की विनाशकारी और पुनर्जनन की शक्ति को दर्शाता है। शिव भक्त इस तिलक को लगाकर शिव की कृपा और आध्यात्मिक शुद्धता की कामना करते हैं।

श्रीमाधव वैष्णव-तिलक

माधव सम्प्रदाय के वैष्णव भक्त श्रीमाधव वैष्णव-तिलक लगाते हैं, जो एक त्रिकोणीय आकृति के साथ बनाया जाता है। यह तिलक भगवान विष्णु के शंख का प्रतीक माना जाता है। यह तिलक भी चंदन या गोपी चंदन से बनाया जाता है। इस तिलक को लगाने से भक्त भगवान विष्णु की रक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं।

श्रीगोदिया-तिलक

गोदिया सम्प्रदाय के भक्त श्रीगोदिया-तिलक लगाते हैं, जो एक नुकीली “V” आकृति के रूप में होता है। यह तिलक भगवान कृष्ण की बांसुरी से प्रेरित है। यह तिलक चंदन या कुमकुम से बनाया जाता है। गोदिया सम्प्रदाय के भक्त इस तिलक को लगाकर भगवान कृष्ण की प्रेममयी और रसिक प्रकृति की भक्ति करते हैं।

श्रीरामानंदिया वैष्णव-तिलक

रामानंदिया सम्प्रदाय के वैष्णव भक्त श्रीरामानंदिया वैष्णव-तिलक लगाते हैं, जो एक “U” आकृति के साथ बनाया जाता है। यह तिलक भगवान राम के धनुष का प्रतीक है। यह तिलक चंदन से बनाया जाता है और भगवान राम की वीरता और धर्मपरायणता को दर्शाता है। इस तिलक को लगाने से भक्त भगवान राम की कृपा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

श्रीविमल-तिलक

विमल सम्प्रदाय के भक्त श्रीविमल-तिलक लगाते हैं, जो एक उल्टे बूंद के आकार में होता है। यह तिलक भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतीक है। यह तिलक चंदन या कुमकुम से बनाया जाता है। इस तिलक को लगाने से भक्त भगवान विष्णु की रक्षा और शत्रु नाश की शक्ति की कामना करते हैं।

श्रीविश्वक वैष्णव-तिलक

विश्वक सम्प्रदाय के वैष्णव भक्त श्रीविश्वक वैष्णव-तिलक लगाते हैं, जो एक “U” आकृति के साथ एक बिंदु के रूप में होता है। यह तिलक भगवान विष्णु के कमल का प्रतीक है। यह तिलक चंदन से बनाया जाता है। इस तिलक को लगाने से भक्त भगवान विष्णु की शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

श्रीशक्ति-तिलक

शक्ति सम्प्रदाय के भक्त श्रीशक्ति-तिलक लगाते हैं, जो एक गोल बिंदु के रूप में होता है। यह तिलक माता दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है। यह तिलक कुमकुम से बनाया जाता है, जो माता की शक्ति और रक्त की लालिमा को दर्शाता है। इस तिलक को लगाने से भक्त माता दुर्गा की शक्ति और रक्षा की कामना करते हैं।

तिलक निर्माण की प्रक्रिया

तिलक निर्माण की प्रक्रिया सम्प्रदाय और उपयोग की जाने वाली सामग्री के आधार पर भिन्न होती है। सामान्यतः तिलक बनाने के लिए चंदन, कुमकुम, हल्दी, भस्म, गोपी चंदन आदि का उपयोग किया जाता है। चंदन को पहले पानी के साथ घिसकर पेस्ट बनाया जाता है, फिर उसे उंगलियों की मदद से माथे पर लगाया जाता है। कुमकुम को सीधे उंगलियों से लगाया जाता है। भस्म को भी उंगलियों से लगाया जाता है, लेकिन इसे पहले शुद्ध किया जाता है। गोपी चंदन को भी पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बनाया जाता है।

तिलक का आध्यात्मिक और सामाजिक प्रभाव

तिलक न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी होता है। यह सम्प्रदायिक एकता को दर्शाता है और भक्तों को एक-दूसरे से जोड़ता है। तिलक लगाने से व्यक्ति में आत्मविश्वास और सकारात्मकता का संचार होता है। यह एक प्रकार का आशीर्वाद भी माना जाता है, जो माथे पर लगाने से व्यक्ति को शुभता और सुरक्षा प्रदान करता है।

निष्कर्ष

हिंदू धर्म में तिलक एक पवित्र और प्रतीकात्मक प्रथा है, जो विभिन्न सम्प्रदायों में अलग-अलग स्वरूपों में देखी जाती है। श्रीगणेश-तिलक से लेकर श्रीशक्ति-तिलक तक, हर तिलक का अपना विशेष महत्व और स्वरूप है। यह तिलक न केवल धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं, बल्कि भक्तों को उनके इष्टदेव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में भी मदद करते हैं। तिलक लगाना एक ऐसी प्रथा है, जो हिंदू संस्कृति की गहराई और विविधता को दर्शाती है।

इस लेख के माध्यम से हमने विभिन्न सम्प्रदायों के तिलकों, उनके स्वरूप, निर्माण प्रक्रिया और महत्व को समझने का प्रयास किया है। यह प्रथा हमें हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों से जोड़ती है और हमें अपने धर्म और परंपराओं के प्रति गर्व महसूस कराती है।

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