होलिका दहन 2025: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व

होलिका दहन 2025: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व"

Holika Dahan – March 13, 2025, Thursday
Holika Dahan 2025: Date and auspicious time

होलिका दहन 2025: 13 मार्च की रात 11:49 के बाद शुभ मुहूर्त, भद्रा मुक्त समय में होगा दहन, 14 मार्च को मनेगी रंगों की होली !

परिचय

होलिका दहन हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे होलाष्टक के समापन के रूप में भी देखा जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है, जिसे पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

होलिका दहन 2025 में 13 मार्च, गुरुवार को होगा। इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात्रि 11:49 बजे के बाद प्रारंभ होगा।

इस लेख में हम होलिका दहन 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।


होलिका दहन 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

🔹 होलिका दहन 2025 की तिथि:

📅 होलिका दहन – 13 मार्च 2025, गुरुवार

🔹 होलिका दहन का शुभ मुहूर्त:

🌙 रात्रि 11:49 बजे के बाद

🔹 पूर्णिमा तिथि का समय:

🕛 पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 13 मार्च 2025 को प्रातः 06:37 बजे
🕛 पूर्णिमा तिथि समाप्त – 14 मार्च 2025 को प्रातः 07:23 बजे

🔹 भद्रा का समय (जिसमें होलिका दहन वर्जित होता है):

💫 भद्रा मुख का समय – 13 मार्च को रात्रि 09:15 से 11:45 तक
💫 भद्रा समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन करना शुभ माना जाता है।

👉 होलिका दहन के लिए भद्रा काल समाप्त होने के बाद शुभ समय 11:49 बजे के बाद रहेगा।


होलिका दहन की पूजा विधि

होलिका दहन से पहले विशेष रूप से इसकी पूजा की जाती है। यह पूजा नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए की जाती है। आइए जानते हैं होलिका दहन की पूजा विधि:

🔹 होलिका दहन पूजा विधि स्टेप-बाय-स्टेप:

1. होलिका दहन की तैयारी:

  • घर या सार्वजनिक स्थान पर होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ, उपले (गोबर के कंडे), सूखी घास, और अन्य पूजा सामग्री इकट्ठा करें।
  • पूजा स्थल को साफ करें और वहाँ गोबर से एक चौकोर जगह बनाएं।

2. पूजन सामग्री:

✅ गोबर के उपले (कंडे)
✅ सूखी लकड़ियाँ
✅ मूंग, चना, गेहूं, नारियल
✅ कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल)
✅ फूल और माला
✅ गंगा जल
✅ गुड़, रोली, मौली
✅ नई फसल (गेहूं की बालियां और चना)

3. होलिका पूजन विधि:

1️⃣ होलिका दहन से पहले, स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2️⃣ पूजा स्थल पर गंगा जल छिड़ककर पवित्र करें।
3️⃣ होलिका और प्रह्लाद का प्रतीक बनाकर उनकी पूजा करें।
4️⃣ कुमकुम, हल्दी, अक्षत, पुष्प और मौली अर्पित करें।
5️⃣ होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें और गेहूं, चना, मूंग अर्पित करें।
6️⃣ नई फसल (गेहूं और चना) को होलिका की अग्नि में भूनें और प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
7️⃣ अंत में, प्रार्थना करें कि होलिका की अग्नि सभी नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों को नष्ट कर दे।


होलिका दहन की पौराणिक कथा

होलिका दहन का पर्व प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ा हुआ है।

🔹 हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप एक अहंकारी राजा था, जिसने खुद को भगवान घोषित कर दिया था। वह चाहता था कि सभी लोग सिर्फ उसकी पूजा करें, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोकने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन वह असफल रहा। तब उसने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी।

🔹 होलिका का छल और प्रह्लाद की विजय

होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में प्रवेश किया, ताकि वह उसे जला सके। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।

इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।


होलिका दहन का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

🔹 धार्मिक महत्व:

  1. बुराई पर अच्छाई की जीत – यह त्योहार यह दर्शाता है कि कितनी भी बुरी शक्तियाँ क्यों न हों, अंत में सत्य और धर्म की ही विजय होती है।
  2. नकारात्मकता का नाश – होलिका दहन के माध्यम से बुरी आदतों, ईर्ष्या, क्रोध और अहंकार का दहन किया जाता है।
  3. परिवार और समाज में सुख-शांति – होलिका दहन के अवसर पर सभी लोग मिलकर खुशियां मनाते हैं, जिससे आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।

🔹 वैज्ञानिक महत्व:

  1. पर्यावरण शुद्धिकरण – होलिका दहन से वातावरण में मौजूद हानिकारक कीटाणु और बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।
  2. मौसम परिवर्तन में सहायक – यह पर्व सर्दी के मौसम के अंत और गर्मी के आगमन का संकेत देता है।
  3. नए अनाज का स्वागत – इस अवसर पर नई फसल की पूजा की जाती है और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

होलिका दहन से जुड़ी मान्यताएँ और परंपराएँ

  1. होलिका की अग्नि में गेहूं और चना भूनने से फसल में बढ़ोतरी होती है।
  2. होलिका की राख को घर में रखना शुभ माना जाता है, यह बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करती है।
  3. होलिका दहन के समय नारियल और गोबर के उपले अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
  4. परिक्रमा करते समय सूखे नारियल और गुड़ चढ़ाने से आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं।
  5. जो लोग नए कार्य की शुरुआत करना चाहते हैं, वे होलिका दहन के बाद राख को अपने कार्यस्थल पर रखें।

निष्कर्ष

होलिका दहन एक ऐसा पर्व है जो धर्म, विज्ञान और समाज को जोड़ने का कार्य करता है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, भाईचारे और खुशहाली का प्रतीक भी है। 2025 में होलिका दहन 13 मार्च को होगा और शुभ मुहूर्त रात्रि 11:49 बजे के बाद रहेगा। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा कर नकारात्मकता को जलाएं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाएं।

🙏 होली की हार्दिक शुभकामनाएँ! 🙏